परेशां हैरान सी मा बोली
मेरा अपना ही बच्चा
मुझे पहचानता नहीं
मेरी आँखों में आँखे डालता नहीं
मुझे माँ माँ कर कर पुकारता नहीं
भंवरे की तरह भ्निभिनाता है
तितली की तरह मंडराता है
बिल्ली की तरह चिल्लाता है
शोर से घबराता है
पंछी की तरह हाथ फहराता है
क्या कभी यह मुझे जान जायेगा
क्या कभी कोई मित्र बना पायेगा
क्या ये स्कूल जा पायेगा
जीने का सबब सीख जाएगा
कभी दुल्हन लाएगा
मेरा अपना ही बच्चा
मुझे पहचानता नहीं
मेरी आँखों में आँखे डालता नहीं
मुझे माँ माँ कर कर पुकारता नहीं
भंवरे की तरह भ्निभिनाता है
तितली की तरह मंडराता है
बिल्ली की तरह चिल्लाता है
शोर से घबराता है
पंछी की तरह हाथ फहराता है
क्या कभी यह मुझे जान जायेगा
क्या कभी कोई मित्र बना पायेगा
क्या ये स्कूल जा पायेगा
जीने का सबब सीख जाएगा
कभी दुल्हन लाएगा
My repsonse
अपने को निर्दोष मान
कर्म को ही लक्ष्य मान
साहस ना छोड़
बच्चे से आँखे ना मोड़
कठिन और लम्बी है यात्रा
विकसिट होगा अवश्य
चाहे थोड़ी हो मात्रा
शायद ठीक भी हो जाए
स्कूल भी जा पाये
दैनिक कामकर्म भी कर पाये
संभव है औरों को समझे
और अपनी बात भी कह पाये
प्यार भी ले और दे पाये
हो सकता है कॉलेज ना जा पाए
या विवाह न कर पाए
शायद कुछ कमी रह जाए
अवश्य तेरी आशा टूटी है
शायद मेरी सान्तावना झूटी है
पर मै भविष्य दर्शा नहीं सकता
झूठी आशा दिला नहीं सक्ता
हिम्मत न हार
कर भाग्य ने जो दिया उसे स्वीकार
करम कर, फल आने पर देखा जायेगा
दे विषाद को त्याग
और बच्चे को दे अनुराग'