Monday, May 6, 2013

Anguish of a mother of a child with autism and my response

परेशां हैरान सी मा बोली
मेरा अपना ही बच्चा
मुझे पहचानता नहीं
मेरी आँखों में आँखे डालता नहीं
मुझे माँ माँ कर कर पुकारता नहीं
भंवरे की तरह भ्निभिनाता है
तितली की तरह मंडराता है
बिल्ली की तरह चिल्लाता है
शोर से घबराता है
पंछी की तरह हाथ फहराता है
क्या कभी यह मुझे जान जायेगा
क्या कभी कोई मित्र बना पायेगा
क्या ये स्कूल जा पायेगा
जीने का सबब सीख  जाएगा
कभी दुल्हन लाएगा
 
My repsonse
 
अपने को निर्दोष मान
कर्म को ही लक्ष्य मान
साहस ना छोड़
बच्चे से आँखे ना मोड़
कठिन और लम्बी है यात्रा 
विकसिट होगा अवश्य
चाहे थोड़ी हो मात्रा
शायद ठीक भी हो जाए
स्कूल भी जा पाये
दैनिक कामकर्म भी कर पाये
संभव है औरों को समझे
और अपनी बात भी कह पाये
प्यार भी ले और दे पाये
हो सकता है कॉलेज ना जा पाए
या विवाह न कर पाए  
शायद कुछ कमी रह जाए
अवश्य तेरी आशा टूटी है
शायद मेरी सान्तावना झूटी है
पर मै भविष्य दर्शा नहीं  सकता
झूठी आशा दिला नहीं सक्ता
हिम्मत न हार
कर भाग्य ने जो दिया उसे स्वीकार 
करम कर, फल आने पर देखा जायेगा
दे विषाद को त्याग
और बच्चे को दे अनुराग'

A Grieving Child's Rejoinder to the Priest

माँ की मृत्यु पर शोक
आत्मा अमर है
यह कह कर समझाते हो
दुखी मन का साहस बढाते हो
पर कहाँ हैं वो हाथ
जो मुझे खाना खिलाते थे
दुविधा में प्यार से सहराते थे 
चेहरे को छुपा कर हंसाते थे
पेंसिल से लिखना सिखाते थे
कहाँ हैं वो पैर
जो चल कर रात में अनेक बार
मुझे मेरे कमरे में देखने आते थे
हाथ पकड़ कर चलना सिखाते थे
बाज़ार से मेरे लिए खिलोने लाते थे
कहाँ हैं वो वाणी
जो मुझे लोरी सुनाती थी
गलती में डांट कर
सही दिशा दिखाती थी
सफलता में हर्ष से
फूली नहीं समाती थी 
कहाँ है वह शरीर मंदिर जिसमे
मेरी माँ की आत्मा दर्श दिखाती थी
वाणी से जीवन नाद बजाती थी
श्वासों से सुरभि फह्लाती थी
आत्मा को अजर अमर कहने से 
मेरा दिल नहीं बहलेगा
कर्मो का फल है कहने से
मेरी माँ की अकाल मृत्यु का
अन्याय न्याय में नहीं बदलेगा