माँ की मृत्यु पर शोक
आत्मा अमर है
यह कह कर समझाते हो
दुखी मन का साहस बढाते हो
पर कहाँ हैं वो हाथ
जो मुझे खाना खिलाते थे
यह कह कर समझाते हो
दुखी मन का साहस बढाते हो
पर कहाँ हैं वो हाथ
जो मुझे खाना खिलाते थे
दुविधा में प्यार से सहराते थे
चेहरे को छुपा कर हंसाते थे
चेहरे को छुपा कर हंसाते थे
पेंसिल से लिखना सिखाते थे
कहाँ हैं वो पैर
जो चल कर रात में अनेक बार
मुझे मेरे कमरे में देखने आते थे
जो चल कर रात में अनेक बार
मुझे मेरे कमरे में देखने आते थे
हाथ पकड़ कर चलना सिखाते थे
बाज़ार से मेरे लिए खिलोने लाते थे
कहाँ हैं वो वाणी
जो मुझे लोरी सुनाती थी
गलती में डांट कर
जो मुझे लोरी सुनाती थी
गलती में डांट कर
सही दिशा दिखाती थी
सफलता में हर्ष से
सफलता में हर्ष से
फूली नहीं समाती थी
कहाँ है वह शरीर मंदिर जिसमे
मेरी माँ की आत्मा दर्श दिखाती थी
वाणी से जीवन नाद बजाती थी
श्वासों से सुरभि फह्लाती थी
आत्मा को अजर अमर कहने से
मेरा दिल नहीं बहलेगा
कर्मो का फल है कहने से
मेरी माँ की अकाल मृत्यु का
अन्याय न्याय में नहीं बदलेगा
कहाँ है वह शरीर मंदिर जिसमे
मेरी माँ की आत्मा दर्श दिखाती थी
वाणी से जीवन नाद बजाती थी
श्वासों से सुरभि फह्लाती थी
आत्मा को अजर अमर कहने से
मेरा दिल नहीं बहलेगा
कर्मो का फल है कहने से
मेरी माँ की अकाल मृत्यु का
अन्याय न्याय में नहीं बदलेगा
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