Thursday, April 4, 2013

A dialogue with a preacher


उपदेशक बोला
यह जीवन अनित्य
और असत्य है
केवल जीवनातीत अनंत ही
नित्य और सत्य है
आँख मूँद लो
कान बंद कर लो
शरीर को नकार दो
तुम केवल आत्मा हो
यह 'सत्य' है मान लो
प्रश्न उठा जीवन के यह 
कुछ क्षण जिन्हें 
मैंने छुआ है
देखा और भाला है
ही तो मेरी पूँजी हैं
खो दूँ इन्हें मृत्यु के 
उस पार की मृगत्रिश्ना मैं 
सत्य असत्य का द्वन्द 
और  पाप दंड का 
भान हुआ मन में  
अल्पज्ञ ही सही 
पर मेरा सत्य, मेरा यथार्थ  
यही क्षण, यही वर्तमान है
जो साक्षात विद्यमान है
अमर हूँ तो कल भी था
कल भी रहूँगा
पर आज मुझे जीने दो
जीवन की हाला को पीने दो

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