Monday, March 25, 2013

A Dialogue with God

हे प्रभु !
कहते हैं तुम हो माता पिता मेरे
फिर क्यों में गाऊँ विरदावली
तुम्हारी सांझ सवेरे
नैवेद्य चढाऊं और हार पहनाऊँ
महल जेसे मंदिरों में बिठाके
रत्न जडित वस्त्र पहनाऊँ
पिता हो तो समझो स्वयमं
पीड़ा, त्रुटियाँ और क्षमता मेरी
दिशा, ज्ञान और साहस दो
... के बनू में तुम्हारा सपूत
चलकर तुम्हारे आदर्शों पर
बनू इस जगत में तुम्हारा दूत
में नन्हा बालक नहीं की
छोटे छोटे उपहारों के लिए
या कर्म दंड से बचने के लिए
करूं चापलूसी तुम्हारी दिन रात
या अपराधियों की तरह
करूं लेन देन की बात

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