मुक्ति नहीं मेरे लिए वैराग्य में
स्वतंत्रा अनुभव करता हूँ मैं
हर्ष के सहस्त्र पाश में
तुम्हारे मंदिर की वेदी पर
बंद नहीं कभी करूंगा
अपनी इन्द्रियों के द्वार मैं
आनंद देंगे जब दृश्य, ध्वनि,
और स्पर्श तेरी शोभा का
मिट जायेंगे मेरे सब भ्रम
उल्लास के प्रकाश से
स्वतंत्रा अनुभव करता हूँ मैं
हर्ष के सहस्त्र पाश में
मदिरा कई रंगों और सुगंधों की
भरते हो तुम मेरे पात्र में
प्रज्जवलित करेगा शत दीप
मेरा संसार तुम्हारे प्रकाश से
और समर्पित करेगा उन्हें तुम्हारे मंदिर की वेदी पर
बंद नहीं कभी करूंगा
अपनी इन्द्रियों के द्वार मैं
आनंद देंगे जब दृश्य, ध्वनि,
और स्पर्श तेरी शोभा का
मिट जायेंगे मेरे सब भ्रम
उल्लास के प्रकाश से
No comments:
Post a Comment